माता अनुसूया के दर्शन पाकर सभी लोग धन्य हो जाते है इसकी पवित्रता सभी के मन में व्याप्त हो जाती है। माता अनुसूया को सती साध्वी रूप के साथ-साथ अपने भक्तों के दुःखों को शीघ्र दूर करती है। उत्तरांखण्ड में माता अनुसूया का प्राचीन मन्दिर है यही पर तीनों देवों ने माता की परीक्षा ली थी। माता अनुसूया से सभी स्त्रियाँ पतिव्रता होने का आशिर्वाद पाने की कामना करती है। प्रति वर्ष माता अनुसूया जयंती का पूजन किया जाता है।
उत्तराखंड के चमोली जिले में मंडल से करीब 6 किलोमीटर ऊपर ऊँचे पहाड़ों पर माता अनुसूया का पौराणिक मंदिर है। इस मंदिर में जप करने से निसंतानों को संतान की प्राप्ति होती है। इसलिए निसंतान दंपत्ति पूरी रात जागकर माँ की पूजा अर्चना कर करते है। शनिवार की रात्रि को मंदिर के अंदर माँ भगवती के आगे संतान प्राप्ति के पूजा-अर्चना करते है। कहा जाता है कि इसी जगह पर माता अनसूया ने अपने तपोबल से ब्रह्मा, विष्णु और महेश को बच्चे के रूप में बदल दिया था। बाद में काफी तप करने के बाद ही त्रिदेव अपने असली रूप में आ सके थे।
महर्षि अत्रि की पत्नी अनुसूया अपने पतिव्रता धर्म के कारण सुविख्यात थी। एक दिन देव ऋषि नारद जी तीनों देवताओं की अनुपस्थिति विष्णु लोक, शिवलोक तथा ब्रह्मलोक पहुँचे वहाँ जाकर उन्होंने लक्ष्मी, पार्वती, सरस्वती जी के सामने माता अनुसूया के पतिव्रत धर्म की प्रशंसा की और कहा- समस्त सृष्टि में उससे बढ़ कर कोई पतिव्रता नही है। नारद जी की बाते सुनकर तीनो देवियाँ सोचने लगी आखिर अनुसूया के पतिव्रत धर्म में ऐसी क्या बात है जिसकी स्वर्गलोक में चर्चा हो रही है? तीनो देवीयों को माता अनुसूया से ईष्र्या होने लगी। नारद जी के वहाँ से चले जाने के बाद तीनों देवियां एक जगह इक्ट्ठी हुई तथा पतिव्रता अनुसूया के पतिव्रत धर्म को खंडित कराने के बारे में सोचने लगी। उन्होंने निश्चय किया की हम अपने पतियों को वहाँ भेजकर अनुसूया के पतिव्रत धर्म खंडित कराएंगे। ब्रह्मा, विष्णु और शिव जब अपने अपने स्थान पर पहुँचे तब तीनों देवियों ने उनसे पतिव्रता अनुसूया के पतिव्रत धर्म खंडित कराने की जिद्द की। तीनों देवों ने बहुत समझाया कि यह पाप हमसे मत करवाओ। परंतु तीनों देवियों ने उनकी एक ना सुनी और अंत में तीनो देवो को ऐसा ही करना पड़ा।
तीनों देवो ने साधु वेश में महर्षि अत्रि के आश्रम पर पहुँचे उस समय पतिव्रता अनुसूया आश्रम पर अकेली थी। साधु के वेश में तीन अतिथियों को द्वार पर देखकर पतिव्रता अनुसूया ने भोजन ग्रहण करने का आग्रह किया। तीनों साधुओं ने कहा कि हम आपके यहाँ भोजन अवश्य ग्रहण करेंगे। परंतु एक शर्त पर कि अगर आप हमे निवस्त्र होकर भोजन कराओगी। पतिव्रता अनुसूया ने साधुओं के शाप के भय से तथा अतिथि सेवा से वंचित रहने के पाप के भय से उन्होंने मन ही मन महर्षि अत्रि का स्मरण किया। दिव्य शक्ति से उन्होंने जाना कि यह तो त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश है। मुस्कुराते हुए माता अनुसूया बोली जैसी आपकी इच्छा। पतिव्रता अनुसूया ने परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना की कि हे परमेश्वर ! इन तीनों को छः-छः महीने के बच्चे की आयु के शिशु बनाओ। जिससे मेरा पतिव्रत धर्म भी खंडित न हो तथा साधुओं को आहार भी प्राप्त हो व अतिथि सेवा न करने का पाप भी न लगे। परमेश्वर की कृपा से तीनों देवता छः-छः महीने के बच्चे बन गए तथा पतिव्रता अनुसूया ने तीनों को निःवस्त्र होकर दूध पिलाया तथा पालने में लेटा दिया। बहुत दिनों तक जब तीनों देव अपने-अपने स्थान पर न देखकर तीनों देवियाँ व्याकुल हो गईं। नारद जी ने वहाँ आकर सारी बात बताई की तीनो देवो को तो पतिव्रता अनुसूया ने अपने सतीत्व से बालक बना दिया है। यह सुनकर तीनों देवियांँ ने महर्षि अत्रि के आश्रम पर पहुँचकर पतिव्रता अनुसूया से माफी मांगी और कहाँ की हमसे ईष्र्यावश यह गलती हुई है। कृप्या आप इन्हें पुनः उसी अवस्था में कीजिए। इतना सुनकर महर्षि अत्रि की पत्नी पतिव्रता अनुसूया ने तीनो बालक को वापस उनके वास्तविक रूप में कर दिया। महर्षि अत्रि व पतिव्रता अनुसूया से तीनों देवों ने वर माँगने को कहा। तब पतिव्रता अनुसूया ने कहा कि आप तीनों हमारे घर बालक बन कर पुत्र रूप में आएँ। हम निःसंतान है। तीनों भगवानों ने तथास्तु कहा तथा अपनी-अपनी पत्नियों के साथ अपने-अपने लोक को प्रस्थान कर गए। कालान्तर में दत्तात्रेय रूप में भगवान विष्णु, चन्द्रमा के रूप में ब्रह्मा और दुर्वासा के रूप में भगवान शिव का जन्म पतिव्रता अनुसूया के गर्भ से हुआ।
रामायण में बताया गया है वनवास के समय भगवान राम, सीता और लक्ष्मण जब महर्षि अत्रि के आश्रम में जाते है तो माता अनुसूया ने सीता माता को पतिव्रत धर्म की शिक्षा दी थी। माता अनुसूया ने सीता माता से कहा कि हे पुत्री! तुम आज्ञा का पालन करना अपने मनोनीत को सुट्टढ़ बनाना। जब तक वन रहो वनचरी रहना है। गृहस्थ में नही जाना है तुम वनचर हो और वनचरी का कर्त्तव्य है कि वन में तो प्रभु ही रहते है और प्रभु से दूर नही जाना । जब वह प्रस्थान करने लगे तो तीनों प्राणियों को एक पंक्ति में विद्यमान कराके महर्षि अत्रि ने और माता अनुसूया ने अन्हें एक शस्त्र दिया। उस शस्त्र में यह विशेषता थी कि जब उस शस्त्र का अन्तरिक्ष में प्रहार होता था तो अन्तरिक्ष से जल आरम्भ हो जाता था। इसको वरुणास्त्र कहते थे। जब राम और रावण का यु़द्ध हुआ था तब इन्द्रजीत ने एक अस्त्र का प्रयोग किया जिससे अग्नि की वर्षा होने लगी लगी श्रीराम की सेना समाप्त होने लगी थी। उस समय श्रीराम ने इस माता अनुसूया का दिया अस्त्र का प्रहार किया था। इससे जल की वर्षा ने अग्नि को समाप्त करके श्रीराम की सहायता की।
माँ दुर्गा के नौ स्वरूप-Maa Durga Ke Nau Roop