एक समय पांडु पुत्र अर्जुन हिमालय पर्वत स्थल पर पहुंँचते ही अपने अस्त्र-शस्त्र एक तरफ रखकर वहाँ बने शिवलिंग के सामने बैठकर मन से भगवान शिव की आराधना करने लगा। अर्जुन की घोर तपस्या के कारण उनके शरीर से तेज निकलने लगा। जिसके कारण वातावरण गर्म होने लगा और देखते-ही-देखते कुछ ही समय में सारा इन्द्रकील वन उस ताप से तपने लगा। इसके कारण ऋषि-मुनियों के धार्मिक अनुष्ठान में बाधा उत्पन्न होने लगी। ऋषि-मुनियों ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव से प्रार्थना पूर्वक अनुरोध किया कि हे प्रभु अर्जुन की मनोकामना पूरी करें और हमारी पीड़ा को दूर करें। भगवान शिव ने ऋषि-मुनियों को वचन देकर उन्हें वापस भेज दिया। भगवान शिव ने अर्जुन की परीक्षा लेने का निर्णय कर लिया।
माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा स्वामी! अर्जुन को क्या चाहिए। देवी! उसे दिव्य अस्त्र-शस्त्र चाहिए? परंतु क्या वह दिव्यास्त्रों क प्रयोग कर लेगा? भगवान शिव ने कहा मैं उसकी परीक्षा लेकर देखूंगा। मै किरात के भेष में जाकर उससे युद्ध करूंगा। माता पार्वती बोली मैं भी साथ चलूंगी और किरात-नारी बन जाती है। यह बात जब शिव के गणों को मालूम हुई तो उन्होंने शिव से प्रार्थना की हे प्रभु! हमारी इच्छा है कि हम भी इस युद्ध को देखें कृप्या हमें भी साथ ले चलें। भगवान शिव बोले ठीक है किंतु तुम्हें किरात-नारियों का भेष धारण करना पड़ेगा। अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव ने किरात रुपी भील वेश धारण किया और इन्द्रकील में पहुंचे। उसी समय इन्द्रकील पर मूकासुर नामक दैत्य ने अतिभयंकर सूअर का रूप धारण कर ऋषि-मुनियों के आश्रम में उत्पात शुरु कर दिया। ऋषि-मुनियों के आश्रमों में कोलाहल मच गया। इससे कारण अर्जुन का ध्यान में बाधा पड़ने लगी जिसके कारण अर्जुन ने अपने धनुष पर बाण चढ़ाया और चला दिया। लेकिन सूअर के शरीर में दो तीर एक साथ आ घुसे। दूसरा तीर किरात भेषधारी शिव का था। दो-दो तीर खाकर सूअर भेषधारी मूकासुर ढेर हो गया और जमीन पर गिरते ही अपने असली रूप में आ गया। अर्जुन और किरात रुपी भगवान शिव में सुअर के वध के विषय में वार्तालाप होने लगी।
सुअर का वध किसने किया? यह तो भगवान शिव की ही लीला थी उनमें और अर्जुन में युद्ध छिड़ गया। अर्जुन के सभी बाणों को किरात ने काट डाला लेकिन किरात को खरोंच तक नहीं लगी। अब अर्जुन ने किरात के ऊपर तलवार से हमला किया, लेकिन अर्जुन की तलवार टूट गई। तब निहत्थे अर्जुन ने एक विशाल पेड़ उखाड़ कर किरात पर फेंका लेकिन किरात के शरीर से टकराते ही पेड़ तिनके की भांति टूटकर बिखर गया। अर्जुन अपने समस्त अस्त्रों का प्रयोग कर चुके थे उनका अस्त्र भंडार खाली हो गया। यह सब देखकर अर्जुन अत्यधिक हैरान थे, अर्जुन निहत्थे ही किरात से युद्ध करना शुरु कर दिया। लेकिन किरात रुपी भगवान शिव ने अर्जुन को उठाकर जमीन पर ऐसा मारा कि वह अर्जुन वेहोश हो गये। होश में आने पर अर्जुन ने वहीं पर रेत का शिवलिंग बनाकर शिव की पूजा शुरु कर दी। इससे अर्जुन को नई शक्ति और अपार स्फूर्ति आ गई। उसने फिर से किरात को ललकारा। अर्जुन ने देखा किरात गले में फूलमाला पड़ी, वह स्तब्ध रह गया। क्योंकि वही फूलमाला तो अर्जुन ने शिवलिंग पर चढ़ाई थी। यह देखकर अर्जुन को समझ में आ गया कि किरात के रूप में कोई और नहीं स्वयं भगवान शंकर है। अर्जुन ने भगवान शिव के अवतार किरात के चरणों में गिर पड़े और अपने आंसुओं से भगवान शिव के चरणों को धोकर क्षमा मांगी। तब शिवजी अपने असली रूप में प्रकट हुए। अर्जुन ने उसी में शिव-पूजन करके उन्हें प्रसन्न किया। भगवान शिव ने अर्जुन की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अभेद्य पाशुपत अस्त्र प्रदान किया। उसी पाशुपत अस्त्र के कारण महाभारत युद्ध में अर्जुन ने अपने प्रतिद्वंद्वी कर्ण को मारने में सफलता पायी थी।
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