भगवान शिव मानव कल्याण के लिए पिप्पलाद अवतार में अवतरित हुए- Bhagwan Shiv manav kalyan ke liye Piplad Avatar mein avtarit huye

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भगवान शिव मानव कल्याण के लिए
पिप्पलाद अवतार में अवतरित हुए 

शिव महापुराण में भगवान शिव के १९ अवतार की कथा सविस्तार बताई है। मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका। पुराणों के अनुसार भगवान शंकर ने अपने परम भक्त दधीचि मुनि के यहां पुत्र रूप में जन्म लिया। पिप्पलाद को महर्षि दधीचि का पुत्र कहा गया है। महर्षि दधीचि ने वृत्रासुर आदि दैत्यों के वध के लिए अपनी हड्डियाँ देवताओं को दान कर दी थी और जब उनकी पत्नी सुवर्चा पति के साथ सती होने के लिए चिता की ओर जाने लगी तभी आकाशवाणी होती है कि तुम्हारे गर्भ में महर्षि दधीचि का ब्रह्मतेज है जो भगवान शिव का अवतार है।आकाशवाणी को सुन सुवर्चा अपने मनोरथ को कुछ समय के लिए टाल देती है और पुत्र के जन्म पश्चात उसे पीपल के वृक्ष के नीचे छोड़ कर सती हो जाती है। वह बालक पीपल के वृक्ष के नीचे निवास करने लगा और पीपल के पत्तों का सेवन करता रहा इस कारण भगवान ब्रह्मा ने इनका नाम पिप्पलाद रखा लेकिन जन्म से पहले ही इनके पिता दधीचि मुनि की मृत्यु हो गई। 

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पीपल की पूजा से शनि का प्रकोप दूर होता है (Pipal ki pooja se shani ka prakop door hota hai)

पिप्पलाद अपने पिता की मृत्यु के कारण अत्यंत क्षुब्ध थे अतः वह देवताओं से अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए भगवान शिव की तपस्या करन में लीन हो गये। पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए? देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा योग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया। शाप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे। पिप्पलाद नेे क्रोधित होकर शनि देव के ऊपर अपने ब्रह्म दंड का प्रहार किया। शनि देव ब्रह्म दंड का प्रहार नहीं सह सकते थे इसलिए वे उससे डर कर भागने लगे। तीनों लोगों की परिक्रमा करने के बाद भी ब्रह्म दंड ने शनिदेव का पीछा नहीं छोड़ा और उनके पैर पर आकर लगा। ब्रह्म दंड के पैर पर लगने से शनिदेव लंगड़े हो गए तब देवताओं ने पिप्पलाद मुनि से शनिदेव को क्षमा करने के लिए कहा। देवताओं के आग्रह पर पिप्पलाद मुनि से शनिदेव को क्षमा को कर दिया। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक के शिवभक्तों को कष्ट नहीं देंगे यदि ऐसा हुआ तो शनिदेव भस्म हो जाएंगे। तभी से पिप्पलाद मुनि का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है।

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