भगवान शिव का अवधूत अवतार- Avdhoot Avatar

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भगवान शिव का अवधूत अवतार
(Bhagwan Shiv ka Avdhoot Avatar)

ब्रह्मा जी नारद जी से कहते है जिस दिन से माँ सती ने अपने शरीर का त्याग किया था उसी दिन से भगवान शिव ने अपना अवधूत सवरूप धारण किया और साधारण मनुष्यों के समान पत्नी वियोग से दुखी होकर परमहंस योगिनियों के समान नग्न शरीर, सर्वांग में भस्सम मले हुए मस्तक पर जटा-जूट धारण किये गले में मुण्डों की माला पहने हुए संसार में भ्रमण करते रहे। एक दिन वह दिगम्बर वेशधारी भगवान शिव दारुक वन में जा पहुंचे वहाँ उन्हें नग्न अवस्था में देखकर मुनियों की स्त्रियाँ उनके सुन्दर सवरूप पर मोहित होकर उनसे लिपट गई यह सब देखकर तब ऋषि मुनियों ने भगवान शिव को को श्राप दे दिया। 

ऋषियों के ऐसा कहते ही भगवान शिव का लिंग पृथ्वी पर गिर पड़ा और पृथ्वी का सीना चीरते हुए पाताल के अन्दर जा पहुँचा ऐसा होने के पश्चात ही भगवान शिव ने अपना सवरूप महाभयानक बना लिया। किन्तु यह भेद किसी पर प्रकट न हुआ की शिवजी ने ऐसा चरित्र की रचना क्यों की है। तीनो लोकों में अनेक प्रकार के उपद्रव उठने लगे जिस कारण सब लोग अत्यंत भयभीत दुखी तथा चिंतित हो गए। पर्वतों से अग्नि की लपटें उठने लगी, दिन में आकाश से तारे टूट-टूट कर गिरने लगे, चारों और हाहाकार हो गया, ऋषि मुनियों के आश्रम में यह उत्पाद सबसे अधिक हुए, परन्तु इस भेद को कोई नही जान पाया की ऐसा क्यों हो रहा है। सभी ऋषि मुनि दुखी होकर देव लोक में पहुंचे पर काई भी इसका कारण न जान पाये। फिर सभी विष्णु लोक में भगवान विष्णु जी की शरण में गए और इस उपद्रव का कारण पुछा। 

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भगवान विष्णु जी ने अपनी दिव्यदृष्टि से यह जान लिया कि यह सब इन ऋषि मुनियों की मूर्खता का परिणाम है। बिना सोचे समझे अपने ब्रह्मतेज का पर्दशन किया तभी ये उपद्रव हो रहा है। आओं अब हम सब भगवान शिव की शरण में चलें और उनसे क्षमा प्रार्थना करें। सभी ने भगवान शिव की स्तुति की और उनसे प्रार्थना की हेे प्रभु लिंग को पुनः धारण कर लें। भगवान शिव बोले हे विष्णु इस में इन ऋषि मुनियों का और देवताओं का कोई दोष नही है। यह चरित्र तो मैंने अपनी इच्छा से धारण किया है। जब हम बिना स्त्री के है तो यह हमारा लिंग किस काम का तब सब देवताओं ने कहा की हे प्रभु माँ सती ने हिमालय के घर में जन्म ले लिया है और आपको पाने के हेतु वह कठिन तपस्या कर रही है। 

तब भगवान शिव ने सभी देवताओं से कहा अगर तुम सभी हमारे लिंग की पूजा करना स्वीकार कर लो तभी हम इसे पुनः धारण करगें। सभी देवताओं ने उनके लिंग का पूजन करना स्वीकार करने के बाद भगवान शिव ने अपना लिंग पुनः धारण किया। हे नारद मैंने और श्री हरी विष्णु जी ने एक उतम हीरे को लेकर शिवलिंग के समान एक मूर्ति का निर्माण किया उस मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित कर दिया। मैंने सब लोगों को संबोधित करते हुए कहा- इस शिवलिंग का जो भी व्यक्ति पूजन करेगा उसे लोक तथा परलोक में आनंद प्राप्त होगा। शिव लिंग के अतिरिक्त हमने वहाँ पर और भी शिवलिंगों की स्थापना की। तब सभी प्रभु शिव का ध्यान करके अपने अपने लोकों को चले गए। 

भटके देवराज इन्द्र को रास्ता दिखाया (Bhatke devraj indra ko rasta dikhaya)

धर्म ग्रंथों के अनुसार एक बार बृहस्पति और अन्य देवताओं को साथ लेकर देव राज इंद्र भगवान शिव के दर्शनों के लिए कैलाश पर्वत पर गए। भगवान शिव ने इंद्र की परीक्षा लेने के लिए अवधूत रूप धारण कर उनका मार्ग रोक लिया। इंद्र ने उसका परिचय पूछा तो भी वह मौन रहा। इस पर देवराज इंद्र क्रोद्ध होकर अवधूत पर प्रहार करने करना चाहा वैसे ही उनका हाथ स्तंभित हो गया। यह देखकर बृहस्पति ने भगवान शिव को पहचान कर अवधूत की बहुविधि स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने देवराज इंद्र को क्षमा कर दिया। 

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