भगवान शिव का भिक्षुवर्य अवतार- Bhagwan Bhikshuvarya Avatar

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भगवान शिव का भिक्षुवर्य अवतार
(Bhagwan Shiv ka Bhikshuvarya Avatar)

सृष्टि के निर्माण और पालन के लिए अनेक देवी-देवताओं ने अपने अलग-अलग रूपों में अवतरित हुए। ऐसे ही भगवान शिव अपने कई अवतारों में अवतरित हुए। भगवान शिव इतने दयालु है कि वह अपने भक्तों को कभी निराश नही करते। सभी देवताओं में भगवान शिव सबसे पहले प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करते है।  भगवान शिव त्रिदेवों में एक देव है इन्हें देवों के देव भी कहते है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी है। भगवान शिव की पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति भगवान शिव है। भगवान शिव अपने इस स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते है। इसी स्वरूप द्वारा परमात्मा ने अपनी शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित कर रखा है। परमात्मा का यह स्वरूप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है क्योंकि पूर्ण सृष्टि का आधार इसी स्वरूप पर आधारित। 

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कहीं खोजों के अनुसार तिब्बत की धरती सबसे पुरातन भूमि है पुरातनकाल में इसके चारों ओर समुद्र होता था। जब समुद्र हटा तो अन्य धरती का प्रकटन हुआ और इस तरह धीरे-धीरे जीवन भी फैलता गया। सबसे पहले भगवान शिव ने इसी धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें आदि देव भी कहा जाता है। आदि का अर्थ प्रारंभ। शिव को आदिनाथ भी कहा जाता है। शिव के साथ-साथ ब्रह्मा और विष्णु ने संपूर्ण धरती पर जीवन की उत्पत्ति और पालन का कार्य किया। सभी ने मिलकर धरती को रहने लायक बनाया और यहां देवता, दैत्य, दानव, गंधर्व, यक्ष और मनुष्य की आबादी को बढ़ाया। महाभारत काल के समय सभी देवता धरती पर रहते थे। महाभारत के बाद सभी अपने-अपने धाम चले गए। 

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भगवान शिव के अवतार (Bhagwan Shiv Ke Avatars)

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