शास्त्रानुसार असुरों के राजा दैत्यराज बलि के काल में असुर, दैत्य और दानव बहुत शक्तिशाली हो गए थे। उस समय उन्हें दैत्य गुरु शुक्राचार्य की महाशक्ति प्राप्त थी। देवता दैत्यों की बढ़ रही शक्ति से बहुत परेशान थे और देवताओं के राजा देवराज इन्द्र भी दैत्यों का कुछ नहीं कऱ सकते थे क्योंकि एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवराज इन्द्र को घमण्ड में चूर देखकर उन्हें शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया था और इन्द्र के शक्तिहीन होने का लाभ उठाते हुए दैत्यराज बलि ने इन्द्र लोक पर भी अपना राज्य स्थापित कर लिया। जिसके कारण इन्द्रदेव और सभी देवता इधर-उधर गुफाओं में छिप कर अपना समय बिताने लगा।
देवराज इंद्र चले श्रीहरि की कृपा पाने
देवराज भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें दैत्यराज बलि के अत्याचारों के बारे में बताया। तब भगवान विष्णु ने देवताओं के दुख को दूर करने के लिए सागर में पड़े अमृत के घड़े को बाहर निकाल कर पीने की सलाह दी ताकि सभी देवता अमर हो सके। इसके लिए सागर मंथन किया जाना था इसके लिए दैत्यों का सहयोग जरुरी था। देवताओं को निर्भय बनाने के लिए देवर्षि नारद ने भी अहम भूमिका निभाई और दैत्यराज बलि को चालाकी से अमृत पीने का लालच देकर सागर मंथन के लिए तैयार कर लिया। श्रीहरि का देवताओं के उद्धार के लिए कच्छप अवतार कूर्म अवतार या कच्छप अवतार भी कहते है। कूर्म के अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर में समुद्रमंथन के समय मंदार पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चैदह रत्नों की प्राप्ति हुई। जब पृथ्वी रसातल को जा रही थी तब भगवान विष्णु ने कच्छपरूप में अवतार लिया और कच्छप की पीठ का घेरा एक लाख योजन था पद्मपुराण में इसका वर्णन है।
इंद्र ने दुर्वासा द्वारा प्रदत्त पारिजातक माला का अपमान किया तो कुपित होकर दुर्वासा ने शाप दिया- तुम्हारा वैभव नष्ट होगा परिणामस्वरूप लक्ष्मी समुद्र में लुप्त हो गई। पश्चात् विष्णु के आदेशानुसार देवताओं तथा दैत्यों ने लक्ष्मी को पुनः प्राप्त करने के लिए मंदराचल की मथानी तथा वासुकी की डोर बनाकर क्षीरसागर का मंथन किया। मंथन करते समय मंदराचल रसातल को जाने लगा तो विष्णु ने कच्छप के रूप में अपनी पीठ पर धारण किया और देव-दानवों ने समुद्र से अमृत एवं लक्ष्मी सहित १४ रत्नों की प्राप्ति करके पूर्ववत् वैभव संपादित किया। एकादशी का उपवास लोक में कच्छ अवतार के बाद ही प्रचलित हुआ।
खुशहाली-प्रभावशाली का प्रतीक
कछुआ प्रभावशाली का प्रतीक होता है जिससे वास्तु दोष का निवारण होता है तथा जीवन में खुशहाली आती है। कछुए को घर में रखने से कामयाबी के साथ-साथ धन-दौलत का भी समावेश होता है। घर में कछुए की प्रतिमा रखने से हवा एवं जल के सभी दोष मुक्त होते है तथा अच्छी ऊर्जा घर में प्रवेश करती है। उत्तर दिशा में कछुए को स्थापित करना शुभ माना जाता है। इसे घर की पूर्व दिशा में भी रखा जा सकता है। जिस घर में कछुए की प्रतिमा रहती या जीता जागता कछुआ रहता है उसके घर में अकाल मृत्यु की संभावना नही रहती तथा हर प्रकार के सुख-समृद्धि का आगमन बना रहता है। बांझपन के दोष को भी कछुआ दूर करता है।
भगवान विष्णु के अवतार-Bhagwan Vishnu ke Avatars