समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए कैसे करें पूजा- How to worship to get rid of problems

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समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए कैसे करें पूजा 
(How to worship to get rid of problems in hindi)

click here » गायत्री मंत्र द्वारा मन पवित्र

सूर्य की पूजा या गायत्री मंत्र का जाप (Soorya pooja, Gayatri Mantra Jaap)

वेदों में सूर्य को भगवान का नेत्र भी कहा गया है। आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ सूर्य ग्रह से ही संबंधित होता है और विधिवत् पाठ करने से समस्त रागों का निवारण हो जाता है। सूर्यदेव की आराधना मनुष्य को आरोग्य के साथ-साथ विजय भी प्रदान करती है। भगवान सूर्य को समर्पित आदित्यहृदय स्तोत्रम् अति फलदायक है इसके प्रभाव से मिर्गी, ब्लड प्रैशर मानसिक रोगों में सुधार होने लगता है। आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास में वृद्धि होने के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता व सिद्धि मिलने लगती है।

click here » हर दुखों का निवारण करता है-पवित्र श्रावण मास

चन्द्रमा के लिए भगवान शिव की पूजा (The Lord Shiva worship for Chander Devta)

भगवान शिव की कृपा प्राप्ति के लिए श्रावण मास का अपना विशेष महत्व होता है। शिव आराधना से शिव और शक्ति दोनो का आर्शीवाद प्राप्त होता है। जो व्यक्ति दुख दद्रिता, निःसंतान और विवाह संयोग से बंचित है अवश्य ही भगवान शिव की अराधना या सोमवार का व्रत रखे। श्रावण माह में सोमवार का विशेष महत्व है। सोमवार चन्द्रमा का दिन है और चन्द्रमा की पूजा भी स्वयं भगवान शिव को स्वतः ही प्राप्त हो जाती है। क्योंकि चन्द्रमा भगवान शिव ने अपने सिर पर धारण किया है। इस महिने शिव पूजा से सभी देवी.देवताओं का आर्शीवाद स्वतः ही प्राप्त हो जाता है।

click here » कैसे बनता है? मंगल दोष से मंगलमयी जीवन

click here » रूद्र अवतार हनुमान

मंगल के लिए कुमार कार्तिकेय या हनुमान जी की पूजा (Mangal ke liye Bhagwan Kartikey ya Hanuman ji ki pooja) 

कैसे बनता है? मंगल ग्रह भी अन्य बारह ग्रहों की भांति कुण्डली के किसी एक भाव में होता है। इन बारह भावों में से कुछ ऐसे होते है जिससे मंगल की स्थिति के अनुसार मंगल को को स्पष्ट किया जाता है। कुण्डली में जब लग्न भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव, और द्वादश भाव में स्थित होता है तब कुण्डली में मंगल दोष माना जाता है। 

click here » हर प्रकार से राजयोग का संयोग बनाता है बुध ग्रह

click here » कल्याणकारी माँ भगवती कवच

बुध के लिए मां दुर्गा की पूजा (Budh ke liye Maa Durga ki Pooja)

बुध ग्रह को सबसे उत्तम ग्रह माना जाता है इसे राजयोग ग्रह भी कहा गया है। कन्या तथा मिथुन राशि का स्वामी होता है हरे रंग का स्वामी, रत्न पन्ना, धातु कांस्य या पीतल। यह बुद्धि, वाणी में मधुरता, तेज, सौन्दर्य का प्रतीक होता है। बुध ग्रह बुद्धि और व्यवसाय से सम्बंधित है अगर किसी भी मनुष्य का बुध ग्रह अच्छी स्थति में है तो मनुष्य अत्यन्त प्रभावशाली हो जाता है तथा इसके साथ-साथ वह जो भी कहता है ऐसा ही होने की सम्भावना बढ़ जाती है और अन्त में मुहं से निकला शब्द सत्य हो जाता है। बुध ग्रह मनुष्य के जीवन खुशहाली तथा प्रसन्नता का प्रतीक है और इसकी कृपा दृष्टि से व्यवसाय में अत्यधिक वृद्धि होती है। बुध देव जी नेे भगवान विष्णु की कठिन तपस्या करके समस्त सिद्धियों की प्राप्ती हुई।

click here » कुछ भी मांगने की आवश्यकता ही नही पड़ती

click here » इस व्रत से भगवान विष्णु हर मनोकामना पूर्ण करते है

बृहस्पति के लिए श्रीहरि की पूजा (Brihaspati ke liye Shri Hari ki Pooja)

गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है इस दिन पूजा से समस्त परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और शीघ्र विवाह-संयोग के लिए भी गुरुवार का व्रत किया जाता है। गुरुवार का व्रत बहुत लाभदायी होता है इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन  बृहस्पतिदेव और केले के पेड़ की पूजा की जाती है। बृहस्पतिदेव को बुद्धि का दाता माना जाता है।

click here » शुक्र से सुख-समृद्धि की प्राप्ति

click here » आठवीं शक्ति महागौरी- Maa Mahagauri

शुक्र के लिए माँ लक्ष्मी या माँ गौरी की पूजा (Shukra ke liye Maa Lakshmi ya Maa Gauri ke Pooja) 

शुक्र से सुख-समृद्धि की प्राप्ति इनके हाथों में दण्ड, कमल, माला और धनुष-बाण भी है। शुक्र ग्रह का संबंध धन की देवी माँ लक्ष्मी जी से है इसलिए धन-वैभव और ऐश्वर्य की कामना के लिए शुक्रवार के दिन पूजा-पाठ करते है। नौ ग्रह हमारे जीवन को बनाने और बिगाड़ने का काम करते हैं। कुंडली में अगर इन ग्रहों की स्थिति अच्छी है तो निश्चित तौर पर यह अपना सकारात्मक प्रभाव दिखाते हैं और अगर हालात इसके विपरीत है तो प्रतिकूल प्रभाव देते है। कुण्डली में शुक्र ग्रह की शुभ स्थिति जीवन को सुखमय और प्रेममय बनाती है। शुक्र के अशुभ होने पर व्यक्ति बुरी आदतों का शिकार होने लगता है। शुक्र के अशुभ होने पर वैवाहिक जीवन में कलह की स्थिति उत्पन्न होने लगती है और इस कलह से अलगाव की नौबत भी आ जाती है। 

जीवन में धन-संपत्ति, सुख-साधन होने पर भी इन सभी का उपभोग नहीं कर पाते ऐसा भी शुक्र के प्रकोप से होता है। पारिवारिक रिश्तों में अनबन की स्थिति, सास-बहु के संबंधों में सदैव बोल-चाल की स्थिति बनी रहती है। परिवार में स्त्री के कारण धन संबंधी  हानि यह भी खराब शुक्र के प्रकोप के कारण होता है। शुक्र के बुरे प्रभाव के कारण व्यक्ति के जीवन में भी बदलाव होने लगते है जैसे व्यवहार में चालबाजी, धोखेबाजी जैसे अवगुण उत्पन्न होने लगते है। शुक्र के पीड़ित होने के कारण व्यक्ति गुप्त रोगों से पीड़ित होने लगता है। उसकी अपनी गलतियां या अनैतिक कार्यों द्वारा वह अपनी सेहत खराब भी कर सकता है। शुक्र के अशुभ होने के कारण व्यक्ति कम उम्र में ही नशे की लत या रोगों का शिकार होने लगता है उसके अंदर नशाखोरी एवं गलत कार्यों द्वारा होने वाले रोग उत्पन्न होने लगते हैं। 

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शनि के लिए श्रीकृष्ण या भगवान शिव की पूजा (Shani ke liye Shri Krishna aur Bhagwan Shiv ki Pooja) 

आमतौर से शनि देव को अशुभ और दुःख प्रदान करने वाला माना जाता है लेकिन वास्तव में ऐसा सत्य नही है। शनिदेव का स्मरण केवल कष्टों के लिए ही नहीं अपितु सुख और समृद्धि के लिए भी किया जाता है। मनुष्य जीवन में शनि के सकारात्मक प्रभाव होते है शनि संतुलन एवं न्याय का दाता है। शनि देव को कर्मफलदाता माना गया है जो मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार अच्छा या बुरा फल प्रदान करता है। यदि यमराज को मृत्यु का देव कहा जाता है तो वही शनि देव भी कर्म के दण्डाधिकारी है। चाहे गलती जान बूझकर की गई हो या अनजाने में हर किसी को अपने कर्मों का दण्ड तो भुगतना ही पड़ता है। शनि देव को सूर्यदेव का पुत्र माना जाता है यह नीले रंग के ग्रह माने जाते हैं, इनकीे नीले रंग की किरणें पृथ्वी पर निरंतर पड़ती रहती है।  यह बड़ा है ग्रह है इसलिए धीमी गति से चलता है। एक राशि का भ्रमण करने में अढाई वर्ष तथा 12 राशियों का भ्रमण करने पर लगभग 30 वर्ष का समय लगाता है। सूर्य पुत्र शनि अपने पिता सूर्य से अत्यधिक दूरी के कारण प्रकाशहीन है। इसलिए इसे अंधकारमयी माना जाता है।

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राहु-केतु के लिए भैरव पूजा (Rahu-Ketu ke liye Bhairav Pooja)

जब से मनुष्य की उत्पत्ति हुई तब से ही इन ग्रहों की दृष्टि मनुष्य के जीवन में लगातार बनी रहती है।यह मनुष्य के पूरे जीवन तक चलती है। इन ग्रहों की उत्पत्ति देवताओं के द्वारा अमृतपान की वजह से हुई।भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहू का सिर धड़ से अलग कर दिया। प्रतिशोध के प्रकोप से सूर्य चन्द्रमा के साथ-साथ देवता भी नही बच सके।  यही से इसकी प्रक्रिया चली आ रही है। किसी भी मनुष्य की कुण्डली में अगर राहू उच्च राशि जैसे वृष और मिथुन में होता है तो उसे हर क्षेत्र में कामयाबी प्राप्त होती है। अगर जन्म कुण्डली में गुरू और चन्द्रमा एक दूसरे से केन्द्र में हो अथवा एक ही स्थान पर हो। इसके कारण उस व्यक्ति की उन्नति निश्चित है। पीढ़ादायक कारण - अगर किसी भी व्यक्ति की कुण्डली में राहू का यह योग बन रहा है- छठा, आठवां और बारहवां भाव बुरे फल देने की श्रेणी में होते है, उस व्यक्ति को विधिवत उपाय करने चाहिए।