गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है इस दिन पूजा से समस्त परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और शीघ्र विवाह-संयोग के लिए भी गुरुवार का व्रत किया जाता है। गुरुवार का व्रत बहुत लाभदायी होता है इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन बृहस्पतिदेव और केले के पेड़ की पूजा की जाती है। बृहस्पतिदेव को बुद्धि का दाता माना जाता है।
Bhagwan Vishnu fulfills every wish with this fast
एक बड़ा प्रतापी और दानी राजा राज करता था। वह प्रत्येक गुरुवार को व्रत रखता एवं भूखे और गरीबों को दान देकर पुण्य प्राप्त करता था। लेकिन यह बात उसकी रानी को अच्छी नही लगती थी। क्योंकि वह न तो व्रत करती थी और न ही किसी को एक भी पैसा दान में देती थी। वह राजा को भी ऐसा करने से मना करती थी। एक समय राजा शिकार खेलने के लिए वन चले गए थे।. घर पर रानी और दासी थी उसी समय गुरु बृहस्पतिदेव साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आए।
साधु ने कहा- यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं जैसा तुम्हें बताता हूँ तुम वैसा ही करना गुरुवार के दिन तुम घर को गोबर का लेप लगाना, अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस मदिरा खाना, कपड़ा धोने के लिए धोबी को देना। इस प्रकार सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा समस्त धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर साधु अंतर्ध्यान हो गए। साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए रानी को केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई। भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा, तब एक दिन राजा ने रानी से बोला कि हे रानी तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूँ। क्योंकि यहाँ पर सभी लोग मुझे जानते है इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता। ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया वहाँ वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
कथा समाप्त होने के बाद वह अपनी बहन के घर आई और कहने लगी- हे बहन, मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी। तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी परंतु जब तक कथा होती है तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते है, इसलिए मैं नहीं बोली कहो दासी क्यों गई थी। रानी बोली- बहन, तुमसे क्या छिपाऊं, हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं था। ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आई उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने तक की बात अपनी बहन को विस्तारपूर्वक सूना दी। रानी की बहन बोली- देखो बहन, भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते है देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो। पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया।
घुड़साल में जाकर चना और गुड़ लेकर आईं फिर उससे केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया। अब पीला भोजन कहाँ से आए इस बात को लेकर दोनों बहुत दुखी थे। लेकिन उन्होंने व्रत रखा था इसलिए बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे इसलिए वे एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गए। भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया। उसके बाद वे सभी गुरुवार को व्रत और पूजन करने लगी। बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास फिर से धन-संपत्ति आ गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी।
दासी बोली- देखो रानी, तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था, इस कारण सभी धन नष्ट हो गया और अब जब भगवान बृहस्पति की कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर से आलस्य होता है। रानी को समझाते हुए दासी कहती है कि बड़ी मुसीबतों के बाद हमने यह धन पाया है इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखे मनुष्यों को भोजन कराना चाहिए, और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए, जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पितृ-पक्ष प्रसन्न होंगे। दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी जिससे पूरे नगर में उसका यश फैलने लगा।
समस्त समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए (To get rid of all problems)