माता पार्वती ने क्रोधवश श्राप क्यों दिया ?
(Mata Parvati ne krodhvash shrap kyu diya)
माँ पार्वती जी ने अपनी व्यथा अपने प्रिय पुत्र गणेश को बताई तो मातृ भक्त गणोश जी स्वयं खेल खेलने भगवान शिव के पास पहुंचे। गणेश जी जीत गए तथा लौटकर अपनी जीत का समाचार माता को सुनाया। इस पर पार्वती बोली कि उन्हें अपने पिता को साथ लेकर आना चाहिए था। गणेश फिर भगवान शिव की खोज करने निकल पड़े। भगवान शिव से उनकी भेंट हरिद्वार में हुई। उस समय भोलेनाथ भगवान विष्णु व कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे। पार्वती से नाराज़ भोलेनाथ ने लौटने से मना कर दिया।
भोलेनाथ के भक्त रावण ने गणेश के वाहन मूषक को बिल्ली का रूप धारण करके डरा दिया। मूषक गणेश जी को छोड़कर भाग गए। इधर भगवान विष्णु ने भोलेनाथ की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया। गणेश जी ने माता के उदास होने की बात भगवान शिव को कह सुनाई। इस पर भोलेनाथ बोले कि हमने नया पासा बनवाया है अगर तुम्हारी माता पुनः खेल खेलने को सहमत हो तो मैं वापस चल सकता हूँ। गणेश जी के आश्वासन पर भगवान शिव वापस पार्वती के पास पहुंचे तथा खेल खेलने को कहा। इस पर माँ पार्वती हँस पड़ी और बोली अब यह पास क्या चीज़ है जिससे खेल खेला जाए।
यह सुनकर भोलेनाथ चुप हो गए इस पर नारद ने अपनी वीणा आदि सामग्री उन्हें दी। इस खेल में भोलेनाथ हर बार जीतने लगे। एक दो पासे फैंकने के बाद गणेश जी समझ गए तथा उन्होंने भगवान विष्णु के पासा रूप धारण करने का रहस्य माता पार्वती को बता दिया। सारी बात सुनकर पार्वती जी को क्रोध आ गया। रावण ने माता को समझाने का प्रयास किया पर उनका क्रोध शांत नही हुआ और क्रोधवश उन्होंने भोलेनाथ को श्राप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ उनके सिर पर रहेगा। नारद को कभी एक स्थान पर न टिकने का अभिषाप मिला। भगवान विष्णु को श्राप दिया कि यही रावण तुम्हारा शत्रु होगा तथा रावण को श्राप दिया कि विष्णु ही तुम्हारा विनाश करेंगे। कार्तिकेय को भी माता पार्वती ने कभी जवान न होने का श्राप दे दिया।
माँ से मिला वरदान
शाप से सभी चिंतित हो गये यह देखकर नारद जी ने अपनी मधुर बातों से माता का क्रोध शांत किया और माता ने उन्हें वरदान माँगने को कहा। नारद जी बोले कि आप सभी को वरदान दें, तभी मैं वरदान लूँगा। पार्वती जी सहमत हो गईं। तब शंकर ने कार्तिक शुक्ल के दिन जुए में विजयी रहने वाले को वर्ष भर विजयी बनाने का वरदान मांगा। भगवान विष्णु ने अपने प्रत्येक छोटे-बड़े कार्य में सफलता का वर मांगा, परंतु कार्तिकेय ने सदा बालक रहने का ही वर मांगा तथा कहा- मैं वासना का संसर्ग न हो तथा सदा भगवत स्मरण में लीन रहूँ। अंत में नारद जी ने देवर्षि होने का वरदान मांगा। माता पार्वती ने रावण को समस्त वेदों की सुविस्तृत व्याख्या देते हुए सबके लिए तथास्तु कहा।
भगवान शिव के अवतार (Bhagwan Shiv Ke Avatar)