भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण
अधर्म का भी विस्तार हुआ उसकी स्त्री का नाम मृषा (झूठ) इसके दम्भ और माया नाम के पुत्र हुए। उन दोनों से लोभ और निकृति (शठता) उत्पन्न हुए। फिर उन दोनों से क्रोध और हिंसा दो लड़की लडके हुए। क्रोध और हिंसा के कलि और दुरक्ति हुए। उनके भय ओर मृत्यु हुए तथा भय मृत्यु से यातना (दुख) और निरय नरक ये हुए। ये सब अधर्म की सन्तानै है। ब्रह्माजी के पुत्र प्रजापति दक्ष और प्रसूती की 16 कन्यायें उत्पन्न की। उनमें से 13 का विवाह धर्म के साथ किया। एक कन्या अग्नि, पितृगण, भगवान् शिव को दी गयी। जिनका विवाह धर्म के साथ हुआ उनके नाम श्रद्धा, मैत्री, दया, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि मेधा, तितिक्षा, ही और मूर्ति।
धर्म की ये सब पत्नियाँ पुत्रवती हुई। सबने एक एक पुत्र रत्न उत्पन्न किया। श्रद्धा ने शुभ, मैनी ने प्रसाद, दया ने अभय, शान्ति ने सुख, तुष्टि ने मोद, पुष्टि ने अहंकार, क्रिया ने योग, उन्नति ने दर्प, पुद्धि ने अर्थ, मेधा ने स्मृति, तितिक्षा ने क्षेमे, और ही (लल्जा) ने प्रश्रय वनय), सबसे छोटी मूर्ति देवी ने भगवान् नर-नारायण को उत्पन्न किया। क्योंकि मूर्ति में ही भगवान् की उत्पत्ति हो सकती है। वह मूर्ति भी धर्म की ही पत्नी है। माता ने मूर्ति पुत्रों की सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें वर माँगने को कहा। पुत्रों ने कहा-हे माँ यदि आप हम पर प्रसन्न है तो वरदान दीजिये कि हमारी रूचि सदा तप में रहे और निरन्तर तप में ही रहें। दोनों भाई बदरिकाश्रम में जाकर घोर तपस्या करने लगे।
इनकी तपस्या से इंद्र परेशान होने लगे। इंद्र को लगने लगा कि नर और नारायण इंद्रलोक पर अधिकार न कर लें। इसलिए इंद्र ने अप्सराओं को नर और नारायण के पास तपस्या भंग करने के लिए भेजा। उन्होंने जाकर भगवान नर-नारायण को अपनी नाना प्रकार की कलाओं के द्वारा तपस्या भंग करने का प्रयत्न किया परन्तुु उनके ऊपर कोई प्रभाव न पड़ा। कामदेव, वसंत तथा अप्सराएं शाप के भय से थर-थर कांपने लगे। उनकी यह दशा देखकर भगवान नर और नारायण ने कहा तुम लोग मत डरो। हम प्रेम और प्रसन्नता से तुम लोगों का स्वागत करते है। नर-नारायण ऐसी वाणी को सुनकर काम अपने सहयोगियों के साथ अत्यन्त लज्जित हुआ। उसने उनकी स्तुति करते हुए कहा- प्रभो! आप निर्विकार परम तत्व है। बड़े-बड़े ज्ञानी पुरुष आपके चरण कमलों की सेवा के प्रभाव से विजयी हो जाते है। हमारे ऊपर आप अपनी कृपादृष्टि सदैव बनाए रखना।
कामदेव की स्तुति सुनकर भगवान नर नारायण प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी योगमाया के द्वारा एक अद्भुत लीला दिखाई। सभी लोगों ने देखा कि 16000 सुंदर-सुंदर नारियां नर और नारायण की सेवा कर रही हैं। फिर नारायण ने इंद्र की अप्सराओं से भी सुंदर अप्सरा को अपनी जंघा से उत्पन्न कर दिया। उर्व से उत्पन्न होने के कारण इस अप्सरा का नाम उर्वशी रखा। नारायण ने इस अप्सरा को इंद्र को भेंट कर दिया। उन 16000 कन्याओं ने नारायण से विवाह की इच्छा जाहिर की तब नारायण ने उन्हें कहा कि द्वापर में मेरा कृष्ण अवतार होगा। तब तक प्रतीक्षा करने को कहा। उनकी आज्ञा मानकर कामदेव ने अप्सराओं में सर्वश्रेष्ठ अप्सरा उर्वशी को लेकर स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया। उसने देवसभा में जाकर भगवान नर और नारायण की अतुलित महिमा के बारे में सबसे कहा जिसे सुनकर देवराज इंद्र को काफी पश्चाताप हुआ। केदार और बदरीवन में नर-नारायण नाम ने घोर तपस्या की थी। इसलिए यह स्थान मूलतः इन दो ऋषियों का स्थान है। दोनों ने केदारनाथ में शिवलिंग और बदरीकाश्रम में विष्णु के विग्रहरूप की स्थापना की थी।
केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना
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