माँ लक्ष्मी के परिवार में उनकी एक बड़ी बहन भी है इस संबंध में एक पौराणिक कथा है कि इन दोनों बहनों के पास रहने का कोई निश्चित स्थान नहीं था। इसलिए एक बार माँ लक्ष्मी और उनकी बड़ी बहन दरिद्रा श्री विष्णु के पास गई और उनसे बोली जगत के पालनहार कृपया हमें रहने का स्थान दो? पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त था कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा अतः श्री विष्णु ने कहा आप दोनों पीपल के वृक्ष पर वास करो। इस तरह वे दोनों बहनें पीपल के वृक्ष में रहने लगी। जब विष्णु भगवान ने माँ लक्ष्मी से विवाह करना चाहा तो लक्ष्मी माता ने इंकार कर दिया। क्योंकि उनकी बड़ी बहन दरिद्रा का विवाह नहीं हुआ था। उनके विवाह के उपरांत ही वह श्री विष्णु से विवाह कर सकती थी। अतः उन्होंने दरिद्रा से पूछा-कैसा वर पाना चाहती हो वह बोली ऐसा पति चाहती हूँ जो कभी पूजा-पाठ न करे व उसे ऐसे स्थान पर रखे जहाँ कोई भी पूजा-पाठ न करता हो। श्री विष्णु ने उनके लिए दुःसह ऋषि नामक वर चुना और दोनों विवाह सूत्र में बंध गए।
भूल से भी न करें रविवार को पीपल-पूजा (Do not do peepal-worship on Sunday even by mistake): दरिद्रा की शर्तानुसार उन दोनों को ऐसे स्थान पर वास करना था जहाँ कोई भी धर्म कार्य न होता हो। ऋषि उसके लिए उसके लिए स्थान ढूंढने निकल पड़े लेकिन उन्हें कहीं पर भी ऐसा स्थान न मिला। दरिद्रा उनके इंतजार में विलाप करने लगी। श्री विष्णु ने पुनः लक्ष्मी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मी जी बोली- जब तक मेरी बहन की गृहस्थी नही बसती मैं विवाह नही करूँगी। धरती पर ऐसा कोई स्थान नही है। जहाँ पर कोई धर्म कार्य न होता हो। उन्होंने अपने निवास स्थान पीपल को रविवार के लिए दरिद्रा व उसके पति को दे दिया। इसलिए हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है। अतः इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है। पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त है कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी।
देवि! मेरे घर से सब प्रकार के दारिद्रय और अमंगल को दूर करो। जगत पालनकत्र्ता भगवान विष्णु ने जगत को दो प्रकार का बनाया है। भगवान विष्णु ने ब्राह्मणों, वेदों, सनातन वैदिक धर्म, श्री तथा पद्मा लक्ष्मी की उत्पत्ति करके एक भाग किया और अशुभ ज्येष्ठा अलक्ष्मी, वेद विरोधी अधम मनुष्यों तथा अधर्म का निर्माण करके दूसरा भाग बनाया। श्रीलिंगमहापुराण के अनुसार समुद्र मंथन में महाभयंकर विष निकलने के बाद ज्येष्ठा अशुभ लक्ष्मी उत्पन्न हुईं फिर विष्णुपत्नी पद्मा लक्ष्मी प्रकट हुईं। लक्ष्मीजी से पहले प्रादुर्भूत होने के कारण अलक्ष्मी ज्येष्ठा कही गयी। अलक्ष्मी (दरिद्रा, ज्येष्ठादेवी) समुद्रमंथन से काषायवस्त्रधारिणी, पिंगल केशवाली, लाल नेत्रों वाली कूष्माण्ड के समान स्तनवाली, अत्यन्त बूढ़ी दन्तहीन तथा चंचल जिह्वा को बाहर निकाले हुए, घट के समान पेट वाली एक ऐसी ज्येष्ठा नाम वाली देवी उत्पन्न हुईं। जिन्हें देखकर सारा संसार घबरा गया। तिरछे नेत्रों वाली सुन्दरता की खान, पतली कमर वाली, सुवर्ण के समान रंग वाली, क्षीरसमुद्र के समान श्वेत साड़ी पहने हुए तथा दोनों हाथों में कमल की माला लिए और खिले हुए कमल के आसन पर विराजमान, भगवान की नित्य शक्ति लक्ष्मी उत्पन्न हुईं। उनके सौन्दर्य, औदार्य, यौवन, रूप-रंग और महिमा देखकर देवता और दैत्य दोनों ही मोहित हो गए।
भगवान विष्णु के अवतार-Bhagwan Vishnu ke Avatars