श्रीमदभागवत् कथा के प्रथम स्कन्ध के द्वितीय अध्याय की कथा - Srimadbhagwat Katha

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श्रीमदभागवत् कथा के प्रथम स्कन्ध के द्वितीय अध्याय की कथा
(Srimadbhagwat Katha)  

सूत जी सुन्दर आसन पर विराजित हैं उनके सामने शौनकादि ऋषि आदि श्रोता विराजमान हैं सूत जी ने कहना प्रारम्भ किया- हे भक्तों में आप लोगों को इस सृष्टि के प्रारम्भ का वृत्तान्त सुनाता हूँ, इस जगत के आदि पुरुष परमात्मा ने एक बार लोकों के निर्माण की इच्छा की, जिसके हेतु परमात्मा ने स्वयं आदि पुरुष का विराट रूप धारण किया। आदि पुरुष में दस इन्द्रियां, पांच महाभूत तथा एक मन था जिन्हे सोलह कलाएं कहा जाता है, सोलह कलाओं से पूर्ण आदि पुरुष का स्वरूप धारण करके जल में शयन किया योग निद्रा में लीन हो गये योग निद्रा में जब परमात्मा गहन में प्रवेश कर गये तो उनकी नाभि से एक कमल प्रकट हुआ उस कमल पर समस्त प्रजापतियों के अधिपति ब्रम्हा जी उत्पन्न हुए तथा परमात्मा के विराट स्वरूप आदि पुरुष के अंगों से अनेक लोकों का निर्माण हुआ। सुत जी कहते हैं कि परमात्मा का वह आदि पुरुष का विराट स्वरूप अत्यन्त दिव्य था।

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भगवान विष्णु का आदि पुरुष अवतार (Bhagwan Vishnu Ka Adi Purush Avatar) 

भगवान के उस स्वरूप के हजारों पैर, जंघाएं, भुजाएं तथा मुख थे जिसके कारण वह स्वरूप अत्यन्त विलक्षण लग रहा था उस स्वरूप में सहस्त्रों सिर थे, हजारों कान थे, हजारों आंखें तथा नासिकाएं थीं हजारों मुकुटों तथा आभुषणों से वह स्वरूप विभूषित हो रहा था, परमात्मा के इसी स्वरुप को नारायण कहा जाता है। भगवान स्वयं श्रीकृष्ण के रूप  अवतार ग्रहण करने आये तो इसे पूर्ण अवतार कहा गया, परमात्मा के अवतार ग्रहण करने के पीछे अनेकों लक्ष्यं थे। सूत जी पुनः बोले-हे भक्तगणों आप सभी बहुत ही भाग्यशाली हैं धन्य हैं कि माया से परिपूर्ण जगत में, वाधाओं से भरे संसार में भी आप सभी परमात्मा श्री कृष्ण के प्रति भक्ति प्रेम और समर्पण भाव से पूर्ण हैं आप सभी पर परमात्मा की अनन्य कृपा है, आप सभी बार बार जन्म और मरण के चक्र से मुक्त हैं  सूत जी ने यहां यह रहस्यमयी बात कही कि परमात्मा पर प्रेम होना परमात्मा की कृपा से ही संभव है तथा जिसकी सच्ची श्रद्धा और   समर्पण परमात्मा श्री कृष्ण के प्रति होती है वह इस भौतिक जगत के प्रपंचों से सर्वथा मुक्त रहता है। हे ऋषियों जब भगवान श्री कृष्ण इस पृथ्वी से प्रस्थान कर रहे थे तो भगवान ज्ञान तथा धर्म को अपने साथ ही स्वधाम ले गये, इसके बाद कलियुग के आगमन से इस पृथ्वी पर मनुष्य अज्ञानरूपी अन्धकार से अन्धे हो गये हैं अर्थात् अपनी दृष्टि खो चुके हैं सूत जी कह रहे हैं कि जब से भगवान श्रीकृष्ण इस पृथ्वी से स्वधाम चले गये तो इस धरा से धर्म और ज्ञान उनके साथ ही चला गया और उसके बाद से  मनुष्य माया के मोह में गृसित लोभ-मोह और वासनाओं से पीड़ित है, परन्तु व्यास जी द्वारा रचित श्रीमदभागवत् जी उन सभी को भौतिक जगत से मुक्ति प्रादान कारने का सवसे सफल और सरल साधन है यह मनुष्य के मोह रूपी अन्धकार को समाप्त करने के लिये सूर्य के समान हैं। 

भगवान विष्णु के अवतार (Bhagwan Vishnu Ke Avatars) 

1) सूत जी ने कहा कि परमात्मा के इसी स्वरूप ने सर्वप्रथम सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार के रूप में ब्राह्मण के रूप में अवतार लिया और परम तप तथा ब्रह्मचर्य का व्रत पालन किया।

2) दूसरा अवतार परमात्मा ने लिया था सूकर का यह अवतार परमात्मा ने लिया था संसार के कल्याण के लिये जिसमें सूकर का रूप ग्रहण कर उन्होने रसातल में गई पृथ्वी को निकाला।

3) तीसरा अवतार उन्होने लिया नारद के स्वरूप में और एक भक्त तथा परम वैरागी की लीला किया।

4) चौथे अवतार में परमात्मा ने राजा धर्म की पत्नी मूर्ती के जुड़वां पुत्र नर-नारायण के रूप में अवतार लिया।

5) पांचवां अवतार सांख्य के उपदेशक कपिल मुनि के रूप में लिया।

6) छठा अवतार उन्होने अनसुइया के वर को पूर्ण करने के लिये अत्रि के पुत्र दत्तत्रेय के रूप में  लिया।

7) सातवां अवतार उन्होने रुचि प्रजापति की पत्नी आकूति से यज्ञ के रूप में लिया।

8) आठवां अवतार उन्होने राजा नाभि की पत्नी मेरू देवी के गर्भ से ऋषभदेव के रूप में लिया।

9) नवां अवतार उन्होने ऋषियों की प्रार्थना से राजा पृथू के रूप में लिया।

10) दसवां अवतार मत्स्य के रूप में लिया तथा वैवस्वत मनु की रक्षा की।

11) ग्यारहवां अवतार देव-दानव द्वारा किये जाने वाले समुद्र मन्थन के समय कच्छप के रूप में लिया तथा  मन्दराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया।

12) बारहवां अवतार धन्वन्तरी के रूप में समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर हुआ।

13) तेरहवां अवतार समुद्र मंथन के समय मोहिनी रूप में लिया और दैत्यों को अपने रूप से मोहित कर देवताओं को अमृत पिला दिया।

14) चौदहवां अवतार नरसिंह रूप में लिया और अत्यन्त बलशाली दैत्यराज हिरण्यकश्प की छाती अपने नाखूनों से फाड़ कर उसका बध किया।

15) पंद्रहवां अवतार वामन रूप में लिया और दैत्यराज बलि के यज्ञ में गये, उन्हें चाहिये थी त्रैलोक परन्तु उन्होने मांगी तीन पग भूमि।

16) सोलहवां अवतार परशुराम के रूप में लिया और पतित हो रहे क्षत्रियों का इक्कीस बार संहार किया।

17) सत्रहवां अवतार उन्होने व्यास देव के रूप में सत्य्वती तथा पराशर के पुत्र हुए।

18) अठारहवां अवतार पृथ्वी के दुख हरने के लिये राम के रूप में लिया।

19) उन्नीसवां तथा बीसवां अवतार में उन्होने कृष्ण और बलराम के रूप में लिया।

20) बीसवां अवतार उन्होने बुद्ध के रूप में लिया सूत जी कहते हैं कि जब कलियुग का अन्त निकट होगा तब जब राज करने वाले राजा भी चोर हो जायेंगे उस काल में जगत के रक्षक भगवान विष्णूयश नामकब्राम्हण के घर कल्कि के रूप में अवतार लेंगे।

सूत जी कहते हैं कि जिस प्रकार एक जल के सरोवर से अनेकों नदियां नाले नहर आदि नकलते हैं उसी प्रकार से परमात्मा विभिन्न रूपों और शरीरों को धारण कर अवतार ग्रहण करते हैं परमात्मा की लीलाएं अमोघ हैं और वह छः श्वर्यों धन, शक्ति, यश, सौन्दर्य, ज्ञान तथा त्याग से सम्पन्न हैं वे ब्रह्मांडों का सृजन करते हैं उनका पालन करते हैं और पुनः नवसृजन के हेतु से उनका संहार करते हैं परमात्मा तो सूक्ष्म रूप में प्रत्येक जीव में व्याप्त है, मनुष्य तो बहुत ही छुद्र प्राणी है वह अल्प ज्ञानी है अतः परमात्मा के रूप, नाम और कर्मों के रहस्य और उसकी गूढता को नहीं जान सकता है। परमात्मा के विषय में तो बहुत महान और ज्ञानी लोग भी अपनी वाणी द्वारा कुछ व्यक्त करने में समर्थ नहीं हैं, सूत जी कह रहे हैं कि भगवान श्री वेदव्यास जी ने इस श्रीमदभागवत् जी की रचना जो की है यह परमात्मा की लीलाओं का ग्रंथ है उनकी लीलाओं का चित्रण है यह ग्रंथ भी वेदों के स्वरूप ही है इस ग्रंथ की रचना के पश्चात् श्री व्यास जी ने इसे अपने पुत्र परम वैराग्य में रहने वाले श्री शुकदेव जी को प्रदान किया जिन्होने इस महान ग्रंथ को गंगा नदी के तट पर बैठकर राजा परीक्षित को सुनाया। 

महाराज परीक्षित जो निराहार रहकर अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे उन्हे शुकदेव जी ने परमात्मा की लीला रहस्य ग्रंथ का श्रवण कराया था। हे विद्वानों शुकदेव जी ने सर्पदंश के शाप से ग्रसित महाराज परिक्षित को यही श्रीमदभागवत् जी की कथा का श्रवण कराया जिसके फलस्वरूप परीक्षित जी को मुक्ति की प्राप्ति हुई। 

भगवान विष्णु के अवतार-Bhagwan Vishnu ke Avatars