श्रीमद्भागवत पुराण में अजामिल की कथा मिलती है। एक कुलीन ब्राह्मण होने के बावजूद अजामिल कब भटक गया पता ही न चला। कान्यकुब्ज (कन्नौज) में रहनेवाला ब्राह्मण अजामिल बड़ा शास्त्रज्ञ था। एक बार अपने पिता के आदेशानुसार वन में गया और वहां से फल-फूल, समिधा तथा कुश लेकर घर के लिए लौटा। लौटते समय इसने देखा कि एक व्यक्ति मदिरा पीकर किसी वेश्या के साथ विहार कर रहा है। वेश्या भी शराब पीकर मतवाली हो रही है।
Only God name to do across the Bhavsagar
अजामिल ने पाप किया नहीं केवल आंखों से देखा और काम के वश में हो गया। अजामिल ने अपने मन को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम रहा। अब यह मन ही मन उसी वेश्या का चिंतन करने लगा और अपने धर्म से विमुख हो गया। अजामिल सुंदर-सुंदर वस्त्र-आभूषण आदि वस्तुएं, जिनसे वह प्रसन्न होती ले आता। यहाँ तक कि इसने अपने पिता की सारी संपत्ति देकर भी उसी कुलटा को रिझाया। यह ब्राह्मण उसी प्रकार की चेष्टा करता, जिससे वह वेश्या प्रसन्न हो। इस वेश्या के मायाजाल में उसने अपनी कुलीन नवयुवती और विवाहिता पत्नी तक का परित्याग कर दिया और उस वेश्या के साथ रहने लगा। उस वेश्या के बड़े कुटुंब का पालन करने में ही यह व्यस्त रहता। चोरी से, जुए से और धोखाधड़ी से अपने परिवार का भरण- पोषण करता था।
सारी रात भगवान का नाम लिया। जब सुबह हुई संतजन चलने लगे तो अजामिल ने कहा- महात्माओं, मुझे क्षमा कर दीजिए। मैं कोई भक्त-वक्त नहीं हूं। मैं तो एक महापापी हूं। मैं वेश्या के साथ रहता हूं और मुझे गांव से बाहर निकाल दिया गया है। केवल आपकी सेवा के लिए मैंने आपको भोजन करवाया। नहीं तो मुझसे बड़ा पापी कोई नहीं है। संतों ने कहा- अरे अजामिल! तूने ये बात हमें कल क्यों नहीं बताई हम तेरे घर में रुकते ही नहीं। अब तूने हमें आश्रय दिया है तो चिंता मत कर। यह बता तेरे घर में कितने बालक हैं। अजामिल ने बता दिया कि महाराज ९ बच्चे हैं और अभी ये गर्भवती है। संतों ने कहा कि अब जो तेरे संतान होगी वो तेरे पुत्र होगा। और तू उसका नाम ‘नारायण’ रखना। जा तेरा कल्याण हो जाएगा। संतजन आशीर्वाद देकर चले गए। समय बीता। उसके पुत्र हुआ। नाम रखा नारायण। अजामिल अपने नारायण पुत्र में बहुत आसक्त था। अजामिल ने अपना संपूर्ण हृदय अपने बच्चे नारायण को सौंप दिया था। हर समय अजामिल कहता था- नारायण भोजन कर लो। नारायण पानी पी लो। नारायण तुम्हारा खेलने का समय है तुम खेल लो। हर समय नारायण-नारायण करता था। इस तरह अट्ठासी वर्ष बीत गए। वह अतिशय मूढ़ हो गया था, उसे इस बात का पता ही न चला कि मृत्यु मेरे सिर पर आ पहुंची है। अब वह अपने पुत्र बालक नारायण के संबंध में ही सोचने-विचारने लगा। इतने में ही अजामिल ने देखा कि उसे ले जाने के लिए अत्यंत भयावने तीन यमदूत आए हैं। उनके हाथों में फांसी है, मुंह टेढ़े-मेढ़े हैं और शरीर के रोएं खड़े हुए हैं।
उस समय बालक नारायण वहाँ से कुछ दूरी पर खेल रहा था। यमदूतों को देखकर अजामिल डर गया और अपने पुत्र को पुकारा-नारायण! नारायण! मेरी रक्षा करो! नारायण मुझे बचाओ! भगवान के पार्षदों ने देखा कि यह मरते समय हमारे स्वामी भगवान नारायण का नाम ले रहा है उनके नाम का कीर्तन कर रहा है, अतः वे बड़े वेग से झटपट वहाँ आ पहुंचे। उस समय यमराज के दूर दासीपति अजामिल के शरीर में से उसके सूक्ष्म शरीर को खींच रहे थे। विष्णु दूतों ने बलपूर्वक रोक दिया। उनके रोकने पर यमराज के दूतों ने उनसे कहा-अरे, धर्मराज की आज्ञा का निषेध करने वाले तुम लोग हो कौन? तुम किसके दूत हो, कहां से आए हो और इसे ले जाने से हमें क्यों रोक रहे हो? जब यमदूतों ने इस प्रकार कहा, तब भगवान नारायण के आज्ञाकारी पार्षदों ने हंसकर कहा- यमदूतों! यदि तुम लोग सचमुच धर्मराज के आज्ञाकारी हो तो हमें धर्म का लक्षण और धर्म का तत्व सुनाओ। दंड का पात्र कौन है? यमदूतों ने कहा-वेदों ने जिन कर्मों का विधान किया है, वे धर्म हैं और जिनका निषेध किया है, वे अधर्म हैं। वेद स्वयं भगवान के स्वरूप हैं। वे उनके स्वाभाविक श्वास-प्रश्वास एवं स्वयं प्रकाश ज्ञान हैं- ऐसा हमने सुना है। पाप कर्म करनेवाले सभी मनुष्य अपने-अपने कर्मों के अनुसार दंडनीय होते हैं।
भगवान के पार्षदों ने कहा- यमदूतों! यह बड़े आश्चर्य और खेद की बात है कि धर्मज्ञों की सभा में अधर्म प्रवेश कर रह हैं क्योंकि वहां निरपराध और अदंडनीय व्यक्तियों को व्यर्थ ही दंड दिया जाता है। यमदूतों! इसने कोटि-कोटि जन्मों की पाप-राशि का पूरा-पूरा प्रायश्चित कर लिया है। क्योंकि इसने विवश होकर ही सही भगवान के परम कल्याणमय नाम का उच्चारण तो किया है। जिस समय इसने नारायण इन चार अक्षरों का उच्चारण किया उसी समय केवल उतने से ही इस पापी के समस्त पापों का प्रायश्चित हो गया। चोर, शराबी, मित्रद्रोही, ब्रह्मघाती, गुरुपत्नीगामी, ऐसे लोगों का संसर्गी, स्त्री, राजा, पिता और गाय को मारनेवाला, चाहे जैसा और चाहे जितना बड़ा पापी हो, सभी के लिए यही-इतना ही सबसे बड़ा प्रायश्चित है कि भगवान के नामों का उच्चारण किया जाए, क्योंकि भगवन्नामों के उच्चारण से मनुष्य की बुद्धि भगवान के गुण, लीला और स्वरूप में रम जाती है और स्वयं भगवान की उसके प्रति आत्मीय बुद्धि हो जाती है। तुम लोग अजामिल को मत ले जाओ। इसने सारे पापों का प्रायश्चित कर लिया है क्योंकि इसने मरते समय भगवान के नाम का उच्चारण किया है। इस प्रकार भगवान के पार्षदों ने अजामिल को यमदूतों के पाश से छुड़ाकर मृत्यु के मुख से बचा लिया भगवान की महिमा सुनने से अजामिल के हृदय में शीघ्र ही भक्ति का उदय हो गया।