भगवान शिव की पूजा ऋषि, राक्षस, दानव, देव, जीवजन्तु, और धरती का हर एक प्राणी और जीव अपनी-अपनी इच्छा पूर्ति के लिए करता है। भगवान शिव के अनेक भक्तों में एक सबसे बड़ा भक्त रावण भी था। इसलिए राक्षस कुल का होकर भी सबसे बड़ा शिव भक्त और ज्ञानी कहलाता था। रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने सर काटकर चढ़ाया और भगवान शिव को धरती पर आना पड़ा। इसलिए एक मंदिर है जहाँ भगवान शिव साक्षात निवास करते थे। वहाँ से स्वर्ग जाने का रास्ता भी था और स्वर्ग जाने के लिए सीढियाँ बनाई गयी। सिरमौर जिला के नाहन से 6 किलोमीटर की दुरी पर पोडिवाल में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है जहा रावण ने स्वर्गलोक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनाई थी। इस पौडिवाल शिव मंदिर की खासियत यह कि एक ऐसे ही मंदिर का वर्णन रामायण काल के एक मंदिर से किया गया। इसलिए इस मंदिर को रावण के उसी स्वर्ग सीढियों वाले मंदिर से तुलना की जाती है। रावण ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और बदले में भगवान शिव ने रावण को वर दिया कि यदि रावण एक दिन के भीतर पांच पौड़ियों यानि 5 सीढियों का निर्माण कर देता है तो उसको अमरता मिल जाएगी। लेकिन यह सीढ़ियाँ बनाते बनाते रावण की आँख लग गई। जिसके कारण रावण का स्वर्ग जाने का सपना पूरा नहीं सका। और शरीर में अमृत होते हुए भी शरीर त्यागना पड़ा। लंकापति रावण ने अमरत्व प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर शिव शंकर भगवान ने उन्हें वरदान दिया की यदि वह एक दिन में पांच पौड़ियों निर्मित कर देगा तो वह अमर हो जाएगा। स्वर्ग की सीढ़ियाँ बनाते हुई रावण को नींद आ गई थी। और रावण का स्वर्ग बनाने का सपना अधूरा रह गया था और इसी कारण वह अमर नहीं हो पाया।
पाँचवी पौड़ी से वंचित
ऐसी मान्यता है कि रावण ने पहली पौड़ी हरिद्वार में निर्मित की जिसे अब हर की पौड़ी कहते हैं। रावण ने दूसरी पौड़ी यहाँ पौड़ी वाला में, तीसरी पौड़ी चुडेश्वर महादेव व चैथी पौड़ी किन्नर कैलाश में बनाई, इसके बाद रावण को नींद आ गई। जब वह जागा तो सुबह हो गई थी। पौड़ी वाला अर्थात् दूसरी पौड़ी में स्थापित शिवलिंग के लिए कहा जाता है कि इस शिवलिंग में भगवान शिव आज भी साक्षात् विद्यामान हैं और शिव के सच्चे भक्तो को दिखाई देते है। इस पौडिवाल शिव मंदिर के लिए कहा जाता है कि इस शिवलिंग कि जो भी दर्शन करता है उसकी हर एक मनोकामना पूर्ण होती है। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु की तपस्या करने पर मृकंडू ऋषि को उन्होंने पुत्र का वरदान देते हुए कहा की इसकी आयु केवल 12 वर्ष की होगी। अतः इस वरदान के फलस्वरूप मारकंडे ऋषि का जन्म हुआ जिन्होंने अमरत्व प्राप्त करने की लिए भगवान शिव की तपस्या में निरंतर महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया। 12 वर्ष पूरे होने पर जब यमराज उन्हें लेने आये तो उन्होंने बोहलियों स्थित शिवलिंग को बांहों में भर लिया जिससे शिवजी वहां प्रकट हुए तथा शिवजी ने मारकंडेय ऋषि को अमरत्व प्रदान किया। वहीं से मारकंडे नदी का जन्म हुआ। इसके बाद भगवान शिव शंकर पौड़ी वाला स्थित इस शिवलिंग में समा गए थे।
भगवान शिव के अवतार (Bhagwan Shiv Ke Avatars)
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