भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्त की इच्छा पूरी के लिए
अभियोग भी सहन कर लेते हैं
जाम्बवंत भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे जिन्हें हमेशा अमर होने का वरदान प्राप्त था। उनका जन्म सतयुग काल में हुआ था व द्वापर युग के अंत तक वे जीवित रहे थे। जामवंत जन्म से ही अत्यधिक बुद्धिमान व शक्तिशाली थे। अपनी बुद्धि के बल पर ही उन्होंने अनेक महारथियों को परास्त कर दिया था। मुख्यतया त्रेता युग में उन्होंने भगवान राम की बहुत सहायता की थी। जामवंत भी भगवान परशुराम व हनुमान की भांति अमरत्व का वरदान था। इसलिये उनका योगदान भी कई युगों तक रहा। साथ ही उन्होंने भगवान विष्णु के कई अवतारों को धरती पर जन्म लेते व अपना कार्य करते देखा। उनकी मुख्य भूमिका त्रेतायुग में भगवान राम के समय रही व एक छोटी भूमिका द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के समय रही।
कहते हैं कि राम रावण के युद्ध में जामवंत भगवान राम की सेना के सेनापति थे। युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान राम जब विदा होकर अयोध्या लौटने लगे तो जामवंत जी ने उनसे कहा प्रभु युद्ध में सबको लड़ने का अवसर मिला परंतु मुझे अपनी वीरता दिखाने का कोई अवसर नहीं मिला। यह युद्ध 87 दिन चला पर मैं युद्ध में भाग नहीं ले सका और युद्ध करने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही रह गई। उस समय भगवान ने जामवंत जी से कहा- तुम्हारी ये इच्छा अवश्य पूर्ण होगी जब मैं कृष्ण अवतार धारण करूंगा।
जामवंत ने इस गुफा में शिवजी का एक रुद्राक्ष शिवलिंग बना कर शिव की बहुत वर्षों तक तपस्या की। एक रुद्राक्ष शिवलिंग आज भी इस गुफा में विराजमान है और आज भी इस शिवलिंग की पूजा होती है। देश-विदेश से लोग इस जामवंत शिव गुफा के दर्शन के लिए आते हैं। प्राचीन काल से इसका आध्यात्मिक दष्टि से काफी महत्व रहा है। शिवपुराण से लेकर स्कंद पुराaण और दूसरे कई अन्य पुराणों में इसका का जिक्र किया गया है। जम्मू की जामवंत गुफा तवी नदी के तट पर स्थित है। कई ऋषि-मुनियों और पीर-फकीरों की तपस्या करने के कारण इस गुफा को पीर खोह गुफा के नाम से जाना जाने लगा है। यहां के लोगों का मानना है कि यह गुफा बाहर भी कई मंदिरों और गुफाओं से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि इसी गुफा में जामवंत और भगवान श्रीकृष्ण के बीच युद्ध हुआ था।
कहा जाता है जामवंत ने इस गुफा में शिवजी का एक रुद्राक्ष शिवलिंग बना कर शिव की बहुत वर्षों तक तपस्या की। एक रुद्राक्ष शिवलिंग आज भी इस गुफा में विराजमान है। कहा जाता है एक रुद्राक्ष शिवलंग पूरे भारत में सिर्फ जामवंत गुफा पीर खोह में है और किसी भी जगह नहीं है। इसके बाद जब भगवान कृष्ण अवतार में प्रकट हुए तब भगवान ने इसी गुफा में जामवंत से युद्ध किया था। यह युद्ध लगातार 27 दिन तक चला था।
भगवान राम के चरणों में जामवंत जी का इतना प्रेम था कि लंका से अयोध्या पहुंचने पर उन्होंने वहां से अपने घर जाने से ही इनकार कर दिया। उनकी जिद थी कि उनके चरणों को छोड़कर वे कहीं नहीं जाएंगे। जब उन्होंने प्रभु श्री राम से द्वापर युग में आकर दर्शन देने की प्रतिज्ञा ले ली तभी उन्होंने अपनी जिद छोड़ी। घर आकर भी वे दिन-रात भगवान का ही चिंतन मनन करते रहे।
द्वापर युग में श्री कृष्ण का अवतार हुआ। उसी समय द्वारका के एक यदुवंशी सत्राजित ने सूर्य की उपासना करके स्यामन्तक मणि प्राप्त की। एक दिन उसी मणि को पहन कर सत्राजित का छोटा भाई प्रसेन जंगल गया जहां एक सिंह ने उसे मार कर मणि छीन ली। बाद में जामवंत ने सिंह को मारकर वही मणि प्राप्त कर ली। इधर द्वारका में यह बात फैल गई कि श्री कृष्ण उस दिव्य मणि को चाहते थे और उन्होंने प्रसेन को मार कर मणि को ले लिया होगा। बस इसी बात पर मणि की खोज करने वे निकल पड़े।
भगवान श्रीकृष्ण जामवंत की गुफा पहुंचे तो देखा एक जामवंत की पुत्री उस मणि से खेलते हुए झूल रही थी। अपरिचित को देख कर वह जोर-जोर से रोने लगी। श्री कृष्ण मणि को निहारने लगे तो धाय चिल्ला उठी। भगवान को इस रूप में देख कर जामवंत नहीं पहचान सके। दोनों के बीच 27 दिनों तक भयंकर युद्ध चला पर कोई हार नहीं माना। भगवान ने एक जोरदार घूंसा जड़ा तो जामवंत कमजोर पड़े। तुरंत ही उनके मन में विचार आया कि उनके प्रभु के अतिरिक्त किसी में भी ऐसी ताकत नहीं है।
भगवान ब्रह्मा के पुत्र होने व स्वयं को मिले वरदान के कारण जाम्बवंत जी किसी से हार नही सकते थे इसलिये उन्हें आश्चर्य हुआ कि वह कैसे किसी मानव से हार सकते है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से उनका परिचय जाना व अपना असली अवतार दिखाने को कहा। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि वे स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं व राम अवतार के बाद यह उनका अगला जन्म हैं।
यह सुनकर जाम्बवंत जी को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ व उन्होंने श्रीकृष्ण को अंतिम बार भगवान राम के रूप में ही दर्शन देने का अनुरोध किया। श्रीकृष्ण ने उनका यह अनुरोध स्वीकार किया व उन्हें त्रेतायुग के भगवान श्रीराम के दर्शन दिए। इसके बाद जाम्बवंत जी ने उन्हें वह मणि लौटा दी व अपनी पुत्री जाम्बवंती के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा। श्रीकृष्ण ने उनका यह प्रस्ताव स्वीकार किया व उनकी पुत्री जाम्बवंती के साथ विवाह किया। इसके बाद जाम्बवंत जी ने मोक्ष प्राप्त किया।
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