सृष्टि और मनुष्य की उत्पत्ति
पुराणों के अनुसार भगवान ने मनुष्य को मिट्टी से, देवताओं को प्रकाश से और देवताओं के विपरीत शक्तियों को आग से बनाया है। अपने पुण्य कर्मों से ही इन सब की प्राप्ति होती है। वेदों के अनुसार जिस किसी ने जन्म लिया है, चाहे वह मिट्टी के रूप में हो या मनुष्य, प्रकाशरूप, अग्नि रूप में ब्रह्मराक्षस सभी की मृत्यु निश्चित है।
सृष्टि के संचालन हेतु भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए नियुक्तिसृष्टि के संचालन हेतु परमेश्वर ने भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए नियुक्त किये जैसे ब्रह्मा सृष्टिकर्ता है, विष्णु पालनकर्ता और शिव सभी संहारक शक्तियों के स्वामी है। अर्थात वे मृत्यु और प्रलय के देवता हैं। ब्रह्मा इस सृष्टि में लाते है, भगवान-विष्णु पालने का कार्य करते है और भगवान शिव ले जाने कार्य करते है। इसी तरह इन्द्र बारिश, विद्युत और युद्ध को संचालित करते हैं। अग्नि सभी आहूतियों को ले जाने वाले हैं। सूर्यदेव जगत के शुद्ध प्रकाश से समस्त प्राणियों को जीवनदान देते है। पवनदेव के अधीन रहती है जगत की समस्त वायु। वरुणदेव का जल जगत पर शासन है। कुबेर धन के अधिपति और देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं। मित्रदेव, देव और देवगणों के बीच संपर्क का कार्य करते हैं। कामदेव और रति सृष्टि में समस्त प्रजनन क्रिया के निदेशक हैं। अदिति और दिति को भूत, भविष्य, चेतना तथा उपजाऊपन की देवी माना जाता है।
भगवान श्री गणेश विघ्न हरण मंगल करण
सृष्टि संचालन के लिए भगवान शिव रूप
सृष्टि से पूर्व शिव हैं और सृष्टि के विनाश के बाद केवल शिव ही शेष रहते हैं। सृष्टि के निर्माण के लिए भगवान शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक किया। भगवान शिव स्वयं पुरूष लिंग के द्योतक हैं तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की द्योतक हैं। पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, इसलिए वे अर्धनारीश्वर हैं। ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की लेकिन जब सृष्टि का विस्तार संभव हुआ तब ब्रह्मा ने भगवान शिव का ध्यान किया और घोर तपस्या की। शिव अर्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए। उन्होंने अपने शरीर के अर्ध भाग से शिवा (शक्ति या देवी) को अलग कर दिया।
भगवान विष्णु के अवतार-Bhagwan Vishnu ke Avatars
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